चंद्र आरती

आरती  > नवग्रह आरती Posted at 2018-10-17 03:49:38
चंद्र आरती जयदेव जयदेव जय चिन्मय चंद्रा ॥ निजतेजें ओवाळूं सच्चित्सुखभद्रा ॥ध्रु०॥ उदयास्तुविणें शोभसि अखंड चिद्नगनीं ॥ भक्तचकोरां जिवविशि परमामृतपानीं ॥ अक्षय निजनिष्कलंक निरसुनि तमरजनीं ॥ तापत्रय दुर करिसी लावुनि निजभजनीं ॥१॥ तव करुणारसपियुषें जन वन वनस्पती ॥ स्थिरचर सफलित पल्लवपुष्पेंसह होती ॥ शुकादि पव्क फळें ते सेवुनियां निवती ॥ पूर्णापूर्ण कळातित तेजोमयमूर्ति ॥२॥ निज बिज धान्यें विरुढत तव करुणापियुषें ॥ सेवुनि मुनिजन वर्तति नर्तति संतोषें ॥ आरति उजळुनि निजतेजप्रकाशें ॥ रंगीं रंगुनि गर्जति निगमागम घोषें ॥३॥

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