चामुंडेश्वरी स्तोत्र

स्तोत्र - मंत्र  > देवी स्तोत्र Posted at 2018-12-09 05:19:42
चामुंडेश्वरी मंगल स्तोत्र ऋषि मार्कण्डेय कृत श्री शैलराज तनये चण्ड मुण्ड निषूदिनी मृगेन्द्र वाहने तुभ्यं चामुण्डायै सुमङ्गलं। पञ्च विंशति सालाड्य श्रीचक्रपुर निवासिनी बिन्दुपीठ स्थिते तुभ्यं चामुण्डायै सुमङ्गलं॥ राज राजेश्वरी श्रीमद् कामेश्वर कुटुम्बिनीं युग नाध तते तुभ्यं चामुण्डायै सुमङ्गलं॥ महाकाली महालक्ष्मी महावाणी मनोन्मणी योगनिद्रात्मके तुभ्यं चामूण्डायै सुमङ्गलं॥ मत्रिनी दण्डिनी मुख्य योगिनी गण सेविते। भण्ड दैत्य हरे तुभ्यं चामूण्डायै सुमङ्गलं॥ निशुम्भ महिषा शुम्भे रक्तबीजादि मर्दिनी महामाये शिवेतुभ्यं चामूण्डायै सुमङ्गलं॥ काल रात्रि महादुर्गे नारायण सहोदरी विन्ध्य वासिनी तुभ्यं चामूण्डायै सुमङ्गलं॥ चन्द्र लेखा लसत्पाले श्री मद्सिंहासनेश्वरी कामेश्वरी नमस्तुभ्यं चामूण्डायै सुमङ्गलं॥ प्रपञ्च सृष्टि रक्षादि पञ्च कार्य ध्रन्धरे पञ्चप्रेतासने तुभ्यं चामूण्डायै सुमङ्गलं॥ मधुकैटभ संहत्रीं कदम्बवन वासिनी महेन्द्र वरदे तुभ्यं चामूण्डायै सुमङ्गलं॥ निगमागम संवेद्ये श्री देवी ललिताम्बिके ओड्याण पीठगदे तुभ्यं चामूण्डायै सुमङ्गलं॥ पुण्देषु खण्ड दण्ड पुष्प कण्ठ लसत्करे सदाशिव कले तुभ्यं चामूण्डायै सुमङ्गलं॥ कामेश भक्त माङ्गल्य श्रीमद् त्रिपुर सुन्दरी। सूर्याग्निन्दु त्रिलोचनी तुभ्यं चामूण्डायै सुमङ्गलं॥ चिदग्नि कुण्ड सम्भूते मूल प्रकृति स्वरूपिणी कन्दर्प दीपके तुभ्यं चामूण्डायै सुमङ्गलं॥ महा पद्माटवी मध्ये सदानन्द द्विहारिणी पासाङ्कुश धरे तुभ्यं चामूण्डायै सुमङ्गलं॥ सर्वमन्त्रात्मिके प्राज्ञे सर्व यन्त्र स्वरूपिणी सर्वतन्त्रात्मिके तुभ्यं चामूण्डायै सुमङ्गलं॥ सर्व प्राणि सुते वासे सर्व शक्ति स्वरूपिणी सर्वा भिष्ट प्रदे तुभ्यं चामूण्डायै सुमङ्गलं॥ वेदमात महाराज्ञी लक्ष्मी वाणी वशप्रिये त्रैलोक्य वन्दिते तुभ्यं चामूण्डायै सुमङ्गलं॥ ब्रह्मोपेन्द्र सुरेन्द्रादि सम्पूजित पदाम्बुजे सर्वायुध करे तुभ्यं चामूण्डायै सुमङ्गलं॥ महाविध्या सम्प्रदायै सविध्येनिज वैबह्वे। सर्व मुद्रा करे तुभ्यं चामूण्डायै सुमङ्गलं॥ एक पञ्चाशते पीठे निवासात्म विलासिनी अपार महिमे तुभ्यं चामूण्डायै सुमङ्गलं॥ तेजो मयीदयापूर्णे सच्चिदानन्द रूपिणी सर्व वर्णात्मिके तुभ्यं चामूण्डायै सुमङ्गलं॥ हंसारूढे चतुवक्त्रे ब्राह्मी रूप समन्विते धूम्राक्षस् हन्त्रिके तुभ्यं चामूण्डायै सुमङ्गलं॥ माहेस्वरी स्वरूपयै पञ्चास्यै वृषभवाहने। सुग्रीव पञ्चिके तुभ्यं चामूण्डायै सुमङ्गलं॥ मयूर वाहे ष्ट् वक्त्रे क्ॐअरी रूप शोभिते शक्ति युक्त करे तुभ्यं चामूण्डायै सुमङ्गलं॥ पक्षिराज समारूढे शङ्ख चक्र लसत्करे। वैष्नवी सञ्ज्ञिके तुभ्यं चामूण्डायै सुमङ्गलं॥ वाराही महिषारूढे घोर रूप समन्विते दंष्त्रायुध धरे तुभ्यं चामूण्डायै सुमङ्गलं॥ गजेन्द्र वाहना रुढे इन्द्राणी रूप वासुरे वज्रायुध करे तुभ्यं चामूण्डायै सुमङ्गलं॥ चतुर्भुजे सिंह वाहे जता मण्डिल मण्डिते चण्डिके शुभगे तुभ्यं चामूण्डायै सुमङ्गलं॥ दंश्ट्रा कराल वदने सिंह वक्त्रे चतुर्भुजे नारसिंही सदा तुभ्यं चामूण्डायै सुमङ्गलं॥ ज्वल जिह्वा करालास्ये चण्डकोप समन्विते ज्वाला मालिनी तुभ्यं चामूण्डायै सुमङ्गलं॥ भृगिणे दर्शितात्मीय प्रभावे परमेस्वरी नन रूप धरे तुभ्य चामूण्डायै सुमङ्गलं॥ गणेश स्कन्द जननी मातङ्गी भुवनेश्वरी भद्रकाली सदा तुब्यं चामूण्डायै सुमङ्गलं॥ अगस्त्याय हयग्रीव प्रकटी कृत वैभवे अनन्ताख्य सुते तुभ्यं चामूण्डायै सुमङ्गलं॥ ॥इति श्री चामुण्डेश्वरी मङ्गलं सम्पूर्णं॥

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