श्री शांतादुर्गेची आरती
भूकैलासा ऐसी ही कवला नगरी |
शांतादुर्गा तेथे भक्तभवहारी |
असुराते मर्दुनिया सुरवरकैवारी |
स्मरती विधीहरीशंकर सुरगण अंतरी||१||
जय देवी जय देवी जय शांते जननी |
दुर्गे बहुदु:खदमने रतलो तव भजनी||धृ||
प्रबोध तुझा नव्हे विश्वाभीतरी |
नेति नेति शब्दे गर्जती पै चारी|
साही शास्त्रे मथिता न कळीसी निर्धारी |
अष्टादश गर्जती परी नेणती तव थोरी|
जय||२||
कोटी मदन रूपा ऐसी मुखशोभा |
सर्वांगी भूषणे जांबूनदगाभा |
नासाग्री मुक्ताफळ दिनमणीची प्रभा |
भक्तजनाते अभय देसी तू अंबा|
जय||३||
अंबे भक्तांसाठी होसी साकार |
नातरी जगजीवन तू नव्हसी गोचर |
विराटरूपा धरूनी करीसी व्यापार |
त्रिगुणी विरहीत सहीत तुज कैचा पार|
जय||४||
त्रितापतापे श्रमलो निजवी निजसदनी |
अंबे सकळारंभे राका शशीवदनी |
अगमे निगमे दुर्गे भक्तांचे जननी |
पद्माजी बाबाजी रमला तव भजनी |
जय||५||
Search
Search here.