श्री स्वामी समर्थ चरीत्र स्तोत्र
स्तोत्र - मंत्र > श्री स्वामी समर्थ स्तोत्र Posted at 2018-11-25 11:08:22
|| श्री स्वामी कृपा स्तोत्र ||
|| ॐ श्री सद्गुरु अक्कलकोट स्वामी समर्थ ||
|| ॐ श्री गणेशाय नम: || ॐ श्री सरस्व़त्यै नम: || ॐ श्री सर्वशक्तिमूर्तये नम: ||
ॐ नमो परात्पर जगत्गुरु | आता नमू मयुरवाहिनी | जी शब्दविश्वाची स्वामिनी | वंदन करुया तियेसी ||1||
जो सकल विश्वाचा आधार | निर्गुण आणि निराकार | तो ब्रम्हा-विष्णु-महेश्वर | सद्भावे वंदू त्रैमूर्ती ||2||
त्रैमूर्तिचा महिमा अपार | गुरुचरित्री वर्णिला साचार | स्तुति करता अपरंपार | वेद चारी शिणले ||3||
कर्दलवनी झाले गुप्त | साक्ष ठेवून गाणग क्षेत्र | निर्गुण पादुका पवित्र | भक्तांसाठी ठेवियल्या ||4||
पंढरीचा पांडुरंग | ज्यासी आवडे संतसंग | तारिले तुक्याचे अभंग | त्यासी प्रणिपात अंतरी ||5||
करु या साष्टांग दंडवत | त्रैमूर्ती श्रीगुरुदत्त | अक्कलकोटी यति समर्थ | सद्भावे नमू अंतरी ||6||
आता श्री स्वामीरायांचे अख्यान | भाविकतेने करा श्रवण | सर्वसुखाचे निधान | लाभेल स्तविता सर्वांसी ||7||
भक्तीचा करुनी सोहळा | दाखवी अगम्य लीला | ऐसी ख्याती त्रैलोक्याला | मी पामर काय वर्णू ||8||
नृसिंहसरस्वती गुरुस्वामी | गुप्त जाहले कर्दलवनी | येतां पुनश्च धर्मा ग्लानी | अक्कलकोटी अवतरले ||9||
कर्दलवनी गुप्त जाहला | अबू पहाडी प्रगटला | अवधूत मानवरुपे आला | अक्कलकोटी माझारी ||10||
श्री गुरुस्वामी यति पाहिला | मूर्तिमंत तेजाचा पुतळा | कंठी रुळती रुद्राक्षमाळा | पद्मासनी स्थित असे ||11||
शांत गंभीर दिसे रुप | हेमसंकाश तनु अनुरुप | नेत्रकमलांची कृपाझेप | भक्तावरी सर्वदा ||12||
भाली शोभे कस्तुरी तिलक | साजिरे दिसे नासिक | ओष्ठ हनुवटी सुंदर मुख | चंद्रापरी दिसतसे ||13||
समुत्कंठ पाहू चला | आजानुबाहू शिव भोळा | कंठा भूषवी त्रिदलमाला | नृसिंहभान गुरुस्वामी ||14||
निम्ननाभी दिठी सुंदर | धूर्जटी कौपीन कटीवर | दत्त नरहरी यतिवर | धीपुरी प्रगटलासे ||15||
अखिल विश्वी विश्वंभरु | भक्तजन सुरतरू | या हो सकल पादपद्म धरु | देहबुध्दी करु दुर ||16||
मम हृदयीं ठसो मूर्ति | शंख चक्रांकित गदा हाती | कामधेनुसह चतुर्वेद मूर्ती | सदैव राहो अंतरी ||17||
अबूगिरीवरुनी हृद्कमली | वेगे येई गुरुमाऊली | रत्नखचित सिंहासनी बैसली | भक्तकाज करावया ||18||
आतां करितों तुझी पूजा | रमावरा अधोक्षजा | सप्रेमें क्षाळितो पदरजा | अर्ध्य देई स्वकरी ||19||
मधुर सुवासिक शीतळ | गंगोदक जळनिर्मळ | पंचामृत स्नान सचैल | निजहस्ते घालितो ||20||
स्नान करुनी, करा आचमन | भरजरी पितांबर नेसून | शालजोडी पांघरुन | सुखे घेई स्वामीया ||21||
चंद्रोपम उपवीत घालुनी | रत्नाभरणे, कौस्तुभमणी | कस्तुरी टिळा लेवुनी | चंदन उटी लावावी ||22||
निराकार, निर्गुण गोपाळा | कंठा भूषवी तुलसीमाळा | बिल्व-शमी दुर्वांकुराला | सहस्त्रनामें अर्पितो ||23||
अष्टगंध, बुक्का सुगंध | सौरभे होती दिशा धुंद | अर्पितो दीप स्वानंद | मानुनी घेई गुरुराया ||24||
रत्नखचित चौरंगावरी | सुवर्णताटी पक्वाने सारी | दहि-दूध लोणचे कोशिंबिरी | पंचखाद्य नैवेद्य सेवा जी ||25||
कर्पूरोदके धुवोनि हस्त | घालितो करी पंचामृत | प्राणापान, व्यान, उदान समस्त | तूचि अससी स्वामिया ||26||
गुरुमूर्ती तू षड्रस | मीहि त्यांस ऐक्य सहज | दिव्य सच्चित रुप निज | वेदपूर्ण भरले असे ||27||
वदनसुवासा तांबूल | त्रयोदशगुणी निर्मळ | मुखशुध्दिस नारळ | घ्यावा आता गुरुराया ||28||
भक्तवत्सला स्वामिराजा | अंगिकारावी माझी पूजा | नमस्कारोनी अधोक्षजा | श्रीमुख बघतो न्याहाळुनी ||29||
तव आरती ओवाळिता | नासती अनंत ब्रम्हहत्या | वेद बोलतो वाणी सत्या | त्रिवार ऐसे सत्यचि ||30||
सनकादिक मुनी सुरवर | करिता स्वामींचा जयकार | मंत्रपुष्पांचा संभार | जडजीवासी उध्दरी ||31||
वेदघोष अति सुस्वर | प्रदक्षिणा घाली वारंवार | प्रेमे साष्टांग नमस्कार | अनंतासी दंडवत ||32||
अनंतकोटी ब्रम्हांडनायका | अनादि स्वरुपा गुरुराया | लागलो आता तव पाया | भक्तकृपाळा उध्दरी ||33||
छत्रचामरे वारीन | गंधर्वगान समर्पिन | सुस्वर वाद्ये वाजवून | तुष्ट करितो तुजलागी ||34||
सुदिव्य, सुखशय्या मृदुल | ठेवी सुखासनी पदकमल | चरण, अहर्निश चुरीन | सेवा मानून घ्यावी जी ||35||
सत्शिष्य भजनी रंगती | भजनानंदी विसावती | संतसंगी जडो प्रीती | हेचि मागणे स्वामीया ||36||
शेष, व्यास, सरस्वती | गुणवर्णन करीती महामती | भक्तस्तवन ऐकुनी श्रीपती | प्रसन्न व्हावे सत्वरी ||37||
विश्वंभर तू सौख्यराशी | भक्तकौतुक पुरविशी | योगक्षेम चालविसी | ऐसी ख्याती त्रिभुवनी ||38||
निजनिर्माल्य प्रसाद देसी | उच्छिष्ट आंस सर्वांसी | पूर्वपुण्ये येती फळासी | सेवा गुज ऐसे हे ||39||
सृष्टि-उत्पत्ति-स्थिती-संहारा | अवतार तुझाचि गुरुवरा | ब्रम्हा-विष्णु-महेश्वरा | स्वामीरुपी शोभसी ||40||
रवि-चंद्रासी तेजाळले | ते तेजही तुजकडोनी आले | निज-भक्त कार्य सगळे | तव प्रसादे लाभते ||41||
इह परत्र सौख्य देसी | कल्पतरुसम शोभसी | जैसा भाव धरावा मानसी | तैसा त्यासी अनुभव ||42||
शिव-विष्णु-शक्ति-गणपति | स्वामीरुपे सारे शोभती | निगमागमही स्तविती | सत्यज्ञानानंद तू ||43||
त्रिविधताप हे निवारिसी | दीनजना उध्दरिसी | क्षमा करावी दासासी | मागणे हेचि जीवनी ||44||
जीवात्मज्योति उजळुनी | तव प्रकाशे प्रकाशुनी | पाहते नित्यचि स्तवनी | स्वामीराजा ||45||
ऐशी अतर्क्य स्वामीलीला | वणिर्ता वेदही शिणला | तेथे मज पामराला | कैसी शक्ती ||46||
काया वाचा मानसी | इंद्रियाधीकृत कर्मासी | अर्पितो परात्परा तुजसी | सारी सेवा ||47||
रामकृष्ण तू सर्वसाक्षी | पृथ्वीवर अवतार घेसी | हरावया भूभारासी | पंढरी वास केला ||48||
पंढरीस श्रीविठ्ठल | गिरीवर विष्णु सोज्वळ | करवीरी लक्ष्मी प्रेमळ | विश्वेश्वर काशीवासी ||49||
कलियुगी नृसिंह-सरस्वती | अत्रिनंदन गाणग क्षेत्री | गुरु माणिक प्रभूही तूचि | अक्कलकोटी गुरुराया ||50||
जे भक्त तुजला भजती | अहर्निश राहे त्यांचे पाठी | भक्त संरक्षणासाठी | अक्कलकोटी वास केला ||51||
स्तविता ही स्वामी माऊली | पापे अनंत जन्माची जळाली | वाढविसी प्रेमसाऊली | वात्सल्य नांदे सर्वदा ||52||
असत्वृत्ति जावो विलया | सद्वृत्ती पावो जया | सकलजनासी देवराया | सौख्य लाभो जगी या ||53||
गोवर्धन गिरी धरिसी | अग्निही तू प्राशिसी | पार्थगुरु सारथी होसी | महिभार हरावया ||54||
अविनाशी अवतार दत्त | जगती आहे विख्यात | अघटित लीला दावित | गाणगापुरी बैसला ||55||
गुरुतत्व गूढ सार | जाणताती भक्त थोर | तोचि प्रज्ञापुरी यतिवर | भक्तकाजी रंगला ||56||
हे स्तोत्र करिता पठण | त्यासी न बाधे चिंता दारुण | भवभय दु:खाचे निरसन | स्वामीकृपे होईल ||57||
अनन्यभावे करा स्मरण | साक्षात्कारे घ्यावे दर्शन | हेचि सद्गुरु वचन | असत्य न होई सर्वथा ||58||
ठेवुनिया श्रध्दा भाव | मनी आळवावा गुरुदेव | भक्तासाठी घेई धाव | रक्षणासी सिध्द सदा ||59||
वटवृक्षतळी जाण | श्रीसद्गुरु प्रतिमा ठेवून | यथासांग करावे पूजन | षोडशोपचारे आदरे ||60||
मग करावे स्तोत्र पठण | नित्यश: एक आवर्तन | अखंड करिता तीन मास पूर्ण | साक्षात् सद्गुरु भेटेल ||61||
श्री स्वामी समर्थ नाम | अनंत कोटींचा कल्पद्रुम | सकल संतांचा विश्राम | नामस्मरणीं नांदतो ||62||
स्वामीकृपा होता क्षणी | मुक्याते फुटेल वाणी | पंगु जाईल उल्लंघुनी | उत्तुंग गिरीही लीलया ||63||
ऐसा महिमा अगाध | एकमुखी वर्णिती वेद | श्री स्वामी स्तोत्र केले सिध्द | आला धावून झडकरी ||64||
स्वामी प्रेमळ माउली | जैसे वत्साते गाऊली | तुझी स्तुति स्त्रोते गायिली | तव प्रेमळ कृपेने ||65||
तूचि श्री व्यंकटेश | तुचि महारुद्र महेश | अनंतकोटी जगदीश | श्री स्वामी समर्था सर्व तूचि ||66||
उत्पति, स्थिती आणि लय | तूचि सकलांचा आशय | गुरूदेवा तुचि मम आश्रय | उपासका सांभाळी ||67||
तव करितां नामस्मरण | लाभे चित्ता समाधान | तव चरणाशी वंदन | देवाधिदेवा समर्था ||68||
जे नर करतील आवर्तन | मनकामना त्यांची होईल पूर्ण | सद्भक्तिचे अधिष्ठान | नित्य ठेवूनी अंतरी ||69||
हा ग्रंथ ज्याचे घरी | तेथे अन्नपूर्णा वास करी | सुख संपत्ति संसारी | लाभेल भाविकां निश्चिती ||70||
करितां ग्रंथाचे पठण | दुःख दारिद्रय जाईल पळून | भक्त सेवेसाठी येईल धावून | दयावंत स्वामीराज ||71||
येथे ठेवूनिया विश्वास | करावे ग्रंथ पारायणास | दृष्टांत देवोनि त्वरेस | सांभाळीन तयालागी ||72||
हे सद्गुरूंचे सत्यवचन | श्रोते ऐका ध्यान देऊन | पुरवील मोक्षसाधन | एकचि माझा स्वामीराज ||73||
विश्वामित्र गोत्र कुलोत्पन्न | देशपांडे उपनामाभिधान | नाम माझे असे वामन | सद्गुरुचरणी लीन सदा ||74||
प्रतिभानुज हे संबोधन | घेतले श्रीगुरूने लिहवून | झाली सेवा सफल पूर्ण | पूर्व सुकृतानुसार ||75||
स्तुतिस्तोत्राचा गुंफिला हार | भक्तिमंजिरी त्यावर | घातली वैजयंती सुंदर | कंठी श्रीगुरुरायाचे ||76||
श्रीस्वामीराज स्तोत्र ग्रंथ | जाहला असे समाप्त | मज पामरे वदविले गुरुनाथे | त्यांचे चरणी दंडवत ||77||
श्री स्वामी समर्थ दत्त | मंत्र हा मनी घोषित | झाले चित्त अवघे तृप्त | पुनश्च चरणी दंडवत ||78||
देह अवघे अक्कलकोट | आत्मस्वरुपी श्री स्वामीसमर्थ | त्यांचे ठायी दंडवत | वारंवार घालीतसे ||79||
इति श्रीस्वामीराज सगुण | भक्तांचे वैभव पूर्ण | प्रतिभानुज करीतसे वर्णन | साष्टांग प्रणिपात करोनी ||80||
|| श्री स्वामी समर्थार्पणमस्तु ||
|| इति श्री अक्कलकोट स्वामी समर्थ स्तोत्र संपूर्णम् ||
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