वृक्ष छेदन विधी

यज्ञ - शान्ति  > पूजन कर्म विधी Posted at 2016-03-02 19:45:00

वृक्ष छेदन विधी

 

मृगशीर्ष , पुनर्वसु , अनुराधा , हस्त , मूळ , दो उत्तरा , स्वाती , श्रवण - नक्षत्रमें कृष्णपक्षमें छेदन |

वृक्षपूजन -- ॐ  ओषधी: प्रतिमोदध्वं० ओषधय: समवदन्त० मंत्र से जलसेचन , गंध , पुष्प , धूप , दीप , नैवैद्य अर्पण करें | विशेषबलि अर्पण करें | वस्त्र से आच्छादित-वेष्टित करें | विविध वर्णके तंतु से वेष्टित करें | 
प्रार्थना -- यानीह वृक्षे भुतानि तेभ्य: स्वस्ति नमोsस्तु व:  | उपहारं गृहित्वेमं क्रियतां वासपर्यय: || प्रार्थयित्वा वरयते स्वस्ति तेsस्तु नगोत्तम || गृहार्थं वान्यकार्यार्थं पूजेयं प्रतिगृह्यताम् | परमान्न-मोदकौदन दधि पल्लोलादिभि: दशै:|| मद्यै: कुसुमधूपैश्च गन्धैश्चैव तरुं पुन: | सुरपितृपिशाच राक्षस भुजगासुर विनायकाश्च | गृहणंतु मत्प्रयुक्तां वृक्षं संस्पृश्य ब्रूयात् || यानीह भूतानि वसंति तानि बलिं गृहित्वा विधिवत्प्रयुक्तम् | अन्यत्र वासं परिकल्पयन्तु क्षमन्तु तानद्य नमोsस्तुतेभ्य : ||
यह प्रार्थना करते आचार्य एवं यजमान वृक्ष के पास रात्रि शयन करें | उपरियुक्त श्लोक अनुसार क्रिया करें | वृक्ष के निवासियों को अन्यत्र जानेकी प्रार्थना करें | पश्चात् दुसरे दिन नित्यकर्म पश्चात् वृक्षको पानी देकर , कुठार पर घृत एवं मधु का लेप करें | पश्चात् पूर्व-उत्तर दिशामें प्रदक्षिणा क्रम से छेदन करें | गोलाकार छेदन करते रहें |  वृक्ष जब गिरे तब पूर-धनधान्य पूरीत गृह ,  अग्नि-अग्निदाह , दक्षिण-मृत्यु , नैऋत्य-कलह , पश्चिम-पशुवृद्धी , वायव्य-चौरभय , उत्तर-धनागम , ईशान-अति उत्तम फल-गिरने की दिशा अनुसार जानें |

 

श्री श्याम जोशी गुरुजी टिटवाळा

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